नई दिल्ली: देश में आज के समय में हम गेहूं-चावल (Rice and Wheat) नहीं बल्कि एक तरह से जहर खा रहे है। जी हाँ इन अनाजों में पोषक तत्वों (Nutritional Value) में भारी गिरावट दर्ज की गई है। हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्यन से पता चला है कि ज्यादा पैदावार वाली किस्मों को विकसित करने पर केंद्रित कार्यक्रमों ने चावल और गेहूं के पोषक तत्वों को इस हद तक बदल दिया है कि उनकी फूड वैल्यू और पोषण मूल्य कम हो गया है।
‘डाउन टू अर्थ’ मैगजीन की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 50 साल से भारत खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिए तेजी से ज्यादा उपज देने वाली चावल और गेहूं की किस्मों को आगे बढ़ा रहा है।
डीटीई की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 50 साल में चावल में जिंक और आयरन (Zinc & Iron) जैसे जरूरी पोषक तत्वों (Nutrients) की मात्रा में क्रमशः 33% और 27% की गिरावट आ गई है। जबकि गेहूं में जिंक और आयरन में 30% और 19% की कमी आई है।
भारत में हरित क्रांति (Green Revolution) का लक्ष्य देश की तेजी से बढ़ती आबादी को खाना मुहैया कराना और खाद्य उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनना था। अतः कृषि वैज्ञानिकों का मुख्य उद्देश्य फसलों की उपज में सुधार लाना था। 1980 के दशक के बाद कृषि वैज्ञानिकों ने अपना ध्यान ऐसी किस्मों को विकसित करने पर केंद्रित कर दिया जो कीटों और बीमारियों के लिए प्रतिरोधी हों और खारेपन, नमी और सूखे जैसे हालातों को सहन कर सकें।
पौधे को मिट्टी से नहीं मिल रहे पोषक तत्व
इसके कारण वैज्ञानिकों को यह सोचने का मौका ही नहीं मिला कि पौधे मिट्टी से पोषक तत्व ले रहे हैं या नहीं। इसलिए समय के साथ पौधों ने मिट्टी से पोषक तत्व लेने की अपनी क्षमता खो दी है।
इसके बारे में 2023 में कराया गया ताजा अध्ययन आईसीएआर और बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए 2021 के अध्ययन को ही आगे बढ़ाता है। अध्ययन में साफ कहा गया कि अनाज पर निर्भर आबादी में जिंक और आयरन की कमी के कारणों पर गौर किया गया। जब अधिक उपज देने वाले चावल और गेहूं की किस्मों का परीक्षण किया गया, तो अनाज में जस्ता और लोहे की मात्रा कम पाई गई।
गेहूं-चावल की फूड वैल्यू में 45% तक कमी
प्रयोगों से पता चला है कि चावल और गेहूं की आधुनिक नस्लें मिट्टी में उपलब्ध होने के बावजूद जस्ता और लौह जैसे पोषक तत्वों को मिट्टी से निकालने में कम कुशल हैं।
भारत में लोगों की दैनिक ऊर्जा जरूरतों का 50 फीसदी से अधिक चावल और गेहूं ही पूरा करते हैं। जबकि पिछले 50 साल में इनकी फूड वैल्यू में 45 प्रतिशत तक गिरावट आई है।
माना जा रहा है कि इसी दर से अगर चावल और गेहूं की क्वालिटी में गिरावट आती रही तो 2040 तक देश में यह इंसानों के उपभोग के लिए बेकार हो जाएगा। अध्ययन में यह भी पता चला कि चावल में जहरीले तत्व आर्सेनिक की मात्रा 1,493 फीसदी बढ़ गई है।
वेबिनार में बताया हरित क्रांति का प्रभाव
शगुन ने वेबिनार में बताया कि शोध ने भारत की पोषण सुरक्षा पर हरित क्रांति के प्रभाव पर प्रकाश डाला।
खाद्यान्नों की पोषण संबंधी प्रोफ़ाइल में सुधार के लिए देश में महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने उत्तर के लिए भू-प्रजातियों और खेती योग्य किस्मों की जंगली प्रजातियों की ओर रुख किया है। केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई बायो-फोर्टिफिकेशन पर एक विशेष परियोजना के तहत, आईसीएआर और अन्य कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने पोषक तत्वों में उच्च दाता किस्मों को खोजने के लिए जर्मप्लाज्म अन्वेषण किया है।
अब तक, आईसीएआर के तहत संस्थानों ने 142 बायो-फोर्टिफाइड किस्में विकसित की हैं। “हालांकि,” शगुन ने कहा, “ये किस्में लोकप्रिय होने और बड़े पैमाने पर किसानों द्वारा अपनाए जाने से बहुत दूर हैं।”
सोर्स : डाउन टू अर्थ
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