नई दिल्ली : उद्योग-व्यापार क्षेत्र के जानकारों एवं कृषक संगठनों का कहना है कि रबी सीजन की सबसे प्रमुख तिलहन फसल सरसों का थोक मंडी भाव सभी प्रमुख उत्पादक राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे चल रहा है। लेकिन सरकार किसानों को हो रहे भारी नुकसान से बचाने तथा कीमतों को सुधारने में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। सामान्य औसत क्वालिटी के साथ-साथ 42 प्रतिशत कंडीशन वाली सरसों का दाम भी समर्थन मूल्य से नीचे चल रहा है।
पिछले साल जब सरसों का बाजार भाव काफी ऊंचा और तेज चल रहा था, तब सरकार ने इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपए प्रति क्विंटल से 400 रुपए बढ़ाकर 5450 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया था। ताकि किसानों को इसका उत्पादन बढ़ाने का प्रोत्साहन मिले और आगे यदि दाम घट जाए तो भी कम से कम ऊंचे स्तर पर समर्थन मूल्य प्राप्त हो सके।
किसानों ने इस बार सरसों का उत्पादन तो बढ़ा दिया मगर अब कमजोर बाजार भाव के कारण उसे आकर्षक मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है। सरसों की सरकारी खरीद कछुआ चाल से हो रही है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार चालू रबी मार्केटिंग सीजन के दौरान 29 मई 2023 तक नैफेड द्वारा किसानों से समर्थन मूल्य पर केवल 6.68 लाख टन सरसों की खरीद की गई जो 124 लाख टन के सरकारी उत्पादन अनुमान को देखते हुए बहुत कम है।
इसमें भी आधा से अधिक भाग हरियाणा में खरीदा गया है। जबकि राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं गुजरात में खरीदारी कम हुई है। उत्तर प्रदेश में तो खरीद की प्रक्रिया ही शुरू नहीं हुई जबकि वह शीर्ष उत्पादक प्रांतों में शामिल है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इस बार हरियाणा में 3.47 लाख टन, मध्य प्रदेश में 1.56 लाख टन, राजस्थान में 1.16 लाख टन तथा गुजरात में करीब 50 हजार टन सरसों की सरकारी खरीद हुई है। ध्यान देने की बात है कि नैफेड को वर्ष 2021 एवं 2022 के सीजन में सरसों खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ी थी।
क्योंकि इसका मंडी भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी ऊंचा चल रहा था। आई ग्रेन इंडिया, दिल्ली वर्ष 2020 में भी इसने केवल 1.15 लाख टन सरसों की खरीद की थी जिसे बाद में बेच दिया गया उद्योग-व्यापार क्षेत्र का कहना है कि सरसों का भाव सुधारने के लिए सरकार को एक तरफ समर्थन मूल्य पर किसानों से इसकी खरीद की गति तेज करनी चाहिए और दूसरी ओर विदेशों से खाद्य तेलों के आयात पर सीमा शुल्क की दर में भारी बढ़ोतरी करनी चाहिए।