ढैंचा बीज अनुदान 2023 : कृषि एवं किसान कल्याण विभाग हरियाणा द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन एवं फसल विविधिकरण योजना के तहत हरियाणा प्रदेश में हरी खाद को बढ़ावा देने के लिए ढैंचा बीज पर 80 प्रतिशत अनुदान पर देने का प्रावधान किया गया है। खेती में लगातार फसलें लेने एवं रासायनिक खादों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में लगातार गिरावट हो रही है। जिससे किसानों को हर वर्ष अधिक रासायनिक खाद का प्रयोग करना पड़ता है। गर्मी में अधिकांश किसानों के खेत खाली रहते हैं ऐसे में किसान “हरी खाद” के लिए फसल लगा सकते हैं ओर मिट्टी की उत्पादन क्षमता को बढ़ा सकते हैं।
जिला भिवानी में इस स्कीम के अन्तर्गत 25 हजार एकड़ के लिए तीन हजार क्विंटल बीज हरियाणा बीज विकास निगम, भिवानी के बिक्री केन्द्रों पर स्टॉक करने के आदेश दिए जा चुके है।
ढैंचा का बीज कैसे मिलेगा?
आवेदन राज्य के किसानों को अनुदान पर ढैंचा बीज लेने के लिए “मेरी फसल–मेरा ब्यौरा” पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। आवेदन की अंतिम तारीख 4 अप्रैल 2023 तक है। किसान आवेदन के बाद बीज हरियाणा बीज विकास निगम के सभी केन्द्रों से प्राप्त कर सकते हैं । किसान “मेरी फसल– मेरा ब्यौरा” पोर्टल पर आवेदन के बाद उसका पंजीयन रसीद के साथ आधार कार्ड, वोटर कार्ड, किसान क्रेडिट कार्ड की कॉपी हरियाणा बीज विकास निगम के बिक्री केंद्र पर जमा करवाना होगा। किसान को अनुदान पर बीज खरीदते समय 20 प्रतिशत राशि हरियाणा बीज विकास निगम के बिक्री केन्द्र पर जमा करवानी होगी।
नोट : जो किसान साथी ढैंचा का बीज लेना चाहते हैं वो अपना ऑनलाइन आवेदन इस साइट www.agriharayana.gov.in पर 04-04-2023 तक रजिस्ट्रेशन करवाएं।
10 एकड़ तक के बीज के लिए सब्सिड़ी
हरियाणा सरकार ने खेतों की सेहत सुधारने के लिए ढैंचा बीज पर सब्सिडी देने का फैसला लिया हुआ है। जिसके तहत हरियाणा का कृषि व किसान कल्याण विभाग एक किसान को अधिकतम 10 एकड़ की जोत के लिए ढैंचा बीज पर 80 सब्सिडी (₹720 प्रति एकड़) प्रदान कर रहा है। इससे अधिक के खेत के लिए बीज पर सब्सिडी प्रदान नहीं की जाएगी। वहीं 80 फीसदी सब्सिडी के बाद बाकी बचे हुए 20 फीसदी खर्च का वहन किसानों को करना होगा।
भूमि के लिए संजीवनी – ” हरी खाद (Green manure)
हरी खाद से किसानों को होगा ये लाभ : हरी खाद सबसे अच्छा , सरल, कम लागत वाला एक ऐसा तरीका है जिसके माध्यम से भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। इसके प्रयोग से भूमि में देशी केंचुओं की संख्या में वृद्धि होती है तथा फसलों के लिए आवश्यक सभी मुख्य व सूक्ष्म पोषक तत्वों, आर्गेनिक कार्बन, एंजाइम्स- विटामिन्स-हार्मोन्स, विभिन्न मित्र बैक्टेरिया व मित्र फंगस, आर्गेनिक एसिड्स आदि में वृद्धि होती है तथा हमारी भूमि उपजाऊ बनती है।
इसके लिए हमे गेंहू की कटाई के बाद पानी की व्यवस्था वाले खेतो में अप्रैल या मई माह में तथा सूखे क्षेत्रो में मानसून आने पर हरी खाद की बुआई करनी चाहिए। हरी खाद के लिए तेजी से बढ़ने वाली दलहनी फसलें जैसे- ढेंचा, सनई, लोबिया, ग्वार, मूंग उड़द आदि की बुआई कर सकते है। मेरे अनुभव के हिसाब से हरी खाद के लिए ढेंचा एवं सनई सबसे उपयुक्त रहती है, जो जल्दी बढ़ती है तथा इनसे बायोमास भी अधिक मिलता है। ढेंचा एक ऐसी फसल है जो अंकुरित होने के बाद पानी की कमी या सूखा को भी सह लेती है तथा वर्षा के मौषम में अधिक पानी गिरने पर पानी भराव को भी सहन कर सकता है।
हरी खाद को बुआई के बाद गलभग 45 से 60 दिनों में फूल आने के पूर्व खेत मे लोहा हल, डिस्क हैरो अथवा रोटावेटर से मिट्टी में पलट दिया जाता है। इस समय खेत मे पर्याप्त नमी होनी चाहिए जिससे हरी खाद शीघ्र ही डिकॉम्पोज़ हो जाए, खाद पलटते समय उपलब्धता के अनुसार खेत मे सरसो, करंज, नीम आदि की खल, जीवामृत, वेस्ट डिकॉम्पोज़र अथवा यूरिया डालने से हरी खाद की फसल अतिशीघ्र ही डिकॉम्पोज़ हो जाती है। दलहनी फसल में एक विशेष गुण होता है कि वह वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को अपनी जड़ो में राइजोबियम बैक्टेरिया के माध्यम से भूमि में भंडारित कर लेती है, जिससे खेत मे बोई जाने वाली अगली फसल को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन तथा अन्य सभी आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध हो जाते है। जिससे एक तरफ़ तो हमारी भूमि का स्वास्थ्य सुधरता है तथा दूसरी ओर रासायनिक खादों का प्रयोग भी कम किया जा सकता है।