सरकार और PFRDA NPS को बेहतर बनाने को लेकर प्रयास कर रही है। कर्मचारियों में ओल्ड पेंशन स्कीम की भारी डिमांड है। इस डिमांड की बढ़ोतरी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार सतर्क हो गई है और मंथन कर रही है इससे सम्बंधित तीन उपायों पर विचार चल रहा है। सरकार एनपीएस में ही न्यूनतम पेंशन तय कर सकती है।
ओल्ड पेंशन स्कीम :
सरकारी कर्मचारियों में Old Pension Scheme की बढ़ती मांग के मद्देनजर केंद्र सरकार सतर्क हो गई है। अब यह चुनावी मुद्दा बन रहा है और इस साल कई राज्यों में असेंबली चुनाव होने वाले हैं आगे फिर 2024 में आम चुनाव हैं तो ऐसे में सरकार कर्मचारियों को खुश करने का हर प्रयास कर रही है।
सूत्रों के हवाले से खबर है की सरकार और पेंशन रेगुलेटर के अंदर तीन उपायों पर मंथन चल रहा है। जो इस प्रकार हैं।
पहला उपाय : सैलरी की आधी रकम तक पेंशन
इसका पहला उपाय यह है की ओल्ड पेंशन की तरह लास्ट सैलरी की आधी रकम तक पेंशन के रूप में मिले, लेकिन उसके लिए कर्मचारी से भी योगदान लिया जायेगा। प्रयोग के तोर पर इस तरह की स्कीम आंध्र प्रदेश में चलाई जा रही है। सरकार और पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी (PFRDA) के बीच इस मुद्दे पर बातचीत हो चुकी है।
दूसरा प्रयास :एनपीएस में भी तय हो न्यूनतम पेंशन
दूसरा उपाय यह है कि मौजूदा स्कीम यानी एनपीएस में ही न्यूनतम पेंशन तय कर दी जाए। NPS को लेकर शिकायत यह है कि इसमें कर्मचारी का योगदान तो तय है, लेकिन रिटर्न तय नहीं है। इस पर काम लगभग पूरा हो चुका है, लेकिन बोर्ड की मंजूरी अभी बाकी है। हालांकि, अनुमान है कि इसमें न्यूनतम रिटर्न 4 से 5 फीसदी हो सकता है, जो बेहद कम होगा। गारंटी के कारण लागत बढ़ जाएगी। वैसे बाजार ने बेहतर रिटर्न दिया तो न्यूनतम रिटर्न से 2-3 पर्सेंट ज्यादा तक पेंशन मिल सकती है। इसके अलावा मौजूदा एनपीएस में मच्योरिटी की 60 फीसदी रकम कर्मचारी के हाथ में चली जाती है। अगर ये पैसा भी पेंशन में लग जाए, तो पेंशन की रकम बढ़ जाएगी।
तीसरा उपाय : सबको न्यूनतम पेंशन की गारंटी
तीसरा उपाय यह है कि अटल पेंशन योजना की तरह सबको न्यूनतम पेंशन की गारंटी दी जाए। PFRDA फिलहाल यह योजना चला रही है, जिसमें योगदान के आधार पर 1000 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक की पेंशन तय है। PFRDA अटल पेंशन योजना का दायरा बढ़ाने और 5000 रुपये की लिमिट खत्म करने के लिए तैयार हो सकती है, बशर्ते गारंटी में किसी वित्तीय कमी की स्थिति में सरकार को मदद का जिम्मा लेना होगा।
तीनों उपायों पर विचार करने की जिम्मेदारी PFRDA की ही है, लेकिन मुश्किल यह है कि फिलहाल इसके नए चेयरमैन की नियुक्ति का इंतजार है। पिछले चेयरमैन का कार्यकाल हाल ही में पूरा हो गया। नए चेयरमैन की नियुक्ति के बाद इस पर काम तेजी से बढ़ सकता है।
अब देखना यह है की चुनाव से अपने कर्मचारियों को खुश करने के लिए क्या करती है।