नई दिल्ली : आने वाले समय में मक्का के लिए उपज हानि 13 से 24%, कपास के लिए 11% से 24% और चावल के लिए 1% से 2% तक बढ़ जाएगी। देश में जलवायु परिवर्तन तेजी से हो रहा है। उम्मीद की जा रही है की आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा असर पंजाब में दिखने को मिल सकता है। खास बात यह है कि इससे फसलों की पैदावार भी प्रभावित होगी।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के कृषि अर्थशास्त्रियों और वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक पंजाब में मक्का और कपास की उपज में लगभग 13% व 11% की कमी आने की संभावना है। देश में उत्पादित कुल अनाज का लगभग 12% हिस्सा पंजाब से है।
दरअसल, भारत मौसम विज्ञान विभाग ने इस महीने की शुरुआत में एक अध्ययन किया, जिसके बाद उन्होंने अपने मौसम जर्नल को प्रकाशित किया है। इस अध्ययन के लिए 1986 और 2020 के बीच हुए वर्षा और तापमान में बदलाव के आंकड़ें इक्क्ठा किए गए। इतना ही नहीं जलवायु परिवर्तन के इन आंकड़ों का इस्तेमाल आगे चावल, मक्का, कपास, गेहूं और आलू पर पड़ने प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए किया गया।
अध्यन के अनुमान:
शोधकर्ताओं ने इस अध्यन के लिए लुधियाना, पटियाला, फरीदकोट, बठिंडा और एसबीएस नगर सहित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की पांच मौसम वेधशालाओं से जलवायु डेटा इक्क्ठा किया था। कृषि अर्थशास्त्री सनी कुमार, वैज्ञानिक बलजिंदर कौर सिडाना और पीएचडी स्कॉलर स्मिली ठाकुर ने कहा कि जलवायु में दीर्घकालिक परिवर्तन से पता लगा है कि तापमान में वृद्धि ही अधिकांश जलवायु वरिर्तनों को चला रही है। जबकि, तापमान में हो रही वृद्धि का वर्षा के बदलते पैटर्न पर इतना प्रभाव नहीं पड़ रहा है। वहीं सबसे पेचीदा निष्कर्षों में से एक यह है कि न्यूनतम तापमान में परिवर्तन के कारण बढ़ते मौसमों के औसत तापमान में परिवर्तन हुआ है।
The Hindu Times के मुताबिक, इसका मतलब है कि न्यूनतम तापमान में वृद्धि की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। यह न्यूनतम तापमान में वृद्धि चावल, मक्का और कपास की उपज के लिए हानिकारक है। जबकि अतिरिक्त न्यूनतम तापमान आलू और गेहूं की उपज के लिए फायदेमंद है।
खरीफ फसलों की पैदावार पर क्या होगा असर:
खरीफ और रबी की फसलों पर जलवायु का प्रभाव व्यापक रूप से भिन्न होगा। खरीफ फसलों में, चावल और कपास की तुलना में मक्का की उपज तापमान और वर्षा में हो रहे परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होगी। वर्ष 2050 तक, मक्का की उपज में 13% की कमी आएगी। उसके बाद कपास लगभग 11% और चावल में 1% की कमी देखने को मिलेगी।
2080 तक ऐसा होगा हाल:
अगर ऐसा ही चलता रहा तो शोधकर्ताओं का कहना है कि नकारात्मक प्रभाव 2080 तक जमा हो जाएगा। इसमें मक्का की उपज में हानि 13 से 24%, कपास की उपज में हानि 11% से 24% और चावल की उपज में हानि 1% से 2% तक बढ़ जाएगी। वहीं, गेहूं और आलू की उपज प्रतिक्रिया वर्ष 2050 के लिए बहुत अधिक समान होगी। जबकि वर्ष 2080 तक, जलवायु में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के साथ, गेहूं और आलू की उपज लगभग 1 प्रतिशत अधिक होगी।
शोधकर्ताओं ने कहा कि हमारे नतीजे बताते हैं की आने समय में औसत तापमान में वृद्धि के कारण ज्यादातर फसलों की उत्पादकता घट जाएगी। कृषि उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल प्रभाव कृषि समुदाय के लिए खतरे का संकेत दे रहा है। उन्होंने कहा कि ये आंकड़े इस दावे को पक्का करते हैं कि भविष्य में जलवायु बहुत स्वागत योग्य नहीं है। उनका कहना है कि जलवायु-स्मार्ट पैकेजों को नीतिगत स्तर पर कृषि विकास एजेंडे में शामिल किया जाना चाहिए।
अब देखना यह है की आने वाले समय में ये आंकड़े इतना सच साबित होते है और ये जलवायु परिवर्तन फसलों की उपज को कितना प्रभावित करता है।