KGF-CHAPTER 2 REVIEW-सिनेमा नही इमोशन है केजीएफ : जब कोई फ़िल्म तकनीक से संवाद से कहानी से निर्देशन से अभिनय से ऊपर उठ जाए तो वो इमोशन बन जाती है और सिनेमाप्रेमियों के लिए केजीएफ एक इमोशन है। एक ऐसा इमोशन जिसे आँखे नही दिल से देखा जाता है।
अक्सर ऐसे इमोशन के साथ खेलकर निर्माता अपने दर्शको को इमोशनल फूल बना देते है लेकिन केजीएफ एक ईमानदार प्रयास है अपने दर्शको के इमोशन को रेस्पेक्ट देने का।

केजीएफ-1 बनाते हुवे मात्र 80 करोड़ खर्च कर बनाई एक शानदार फ़िल्म से निर्माता-निर्देशक ने जब 250 करोड़ का कारोबार किया तो इसबार खर्च 100 करोड़ के ऊपर का है तो कारोबार अगर 1000 करोड़ के ऊपर भी जाये तो क्या ही नई बात होगी।
जहाँ पार्ट -1 में रॉकी दी मॉन्स्टर बने यश ने अकेले रिकॉर्ड के झंडे गाड़े वही इसबार उनका साथ देने अधीरा बनकर संजय दत्त और प्रधानमंत्री के किरदार में रवीना टण्डन है तो रिकॉर्ड की झड़ी ऐसी लगेगी की सिनेमा जगत और दर्शक वर्षो तक इसे याद रखेंगे।
फ़िल्म में बोले हर संवाद का एक अर्थ है और फ़िल्म बनाने वालों ने उस अर्थ को अपने हिसाब से इतने प्रभावी ढंग से डिकोड किया है कि दर्शक के पास वाह करने के सिवा कुछ भी नही बचेगा।
दरअसल यह फ़िल्म दर्शक और फ़िल्म बनाने वालों के बीच एक मुकाबले की तरह है एक ऐसा मुकाबला जिसमे निर्माता-निर्देशक फ़िल्म के अगले सीन को छुपाते है और दर्शको को अब अगला सीन क्या होगा इसका अंदाजा लगाना होता है।इस मुकाबले में हर बार निर्देशक जितते है और यही हर दर्शको को और किक देता है।
सिनेमा में इतने ईमानदारी से अपने दर्शको के इमोशन के रेस्पेक्ट देने वाले निर्माता -निर्देशक और अभिनेता संग पूरी उस फ़ौज को सलाम जिनका नाम हम कभी याद नही रखते लेकिन उनका बीजीएम हो या सेट के डिज़ाइन या फिर कॉस्ट्यूम सबकुछ फ़िल्म का अभिन्न अंग बन जाता है।
केजीएफ कोई ऐसा सीरीज नही है जिसे रेटिंग के पैरामीटर में फिट किया जाए लेकिन अगर देना अनिवार्य हो तो यह फ़िल्म ★★★★★ में से ★★★★★ की हकदार है।
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