जलसा फिल्म रिव्यू : कश्मीर फाइल्स, अपहरण-2, बच्चन पांडेय के साथ साथ बॉक्स आफिस पर एक बार फिर विद्या बालान अपने जादुई कलाकारी के साथ फ़िल्म “जलसा” लेकर आई है।इस बार विद्या का साथ दिया है एक और महिला कलाकार शेफाली शाह ने।
जलसा मूवी की क्या है कहानी?
कहानी एक एक्सीडेंट से शुरू होती है जिसे एक यूट्यूब चैनल की एंकर माया मेनन यानी कि विद्या बालान गलती से अंजाम देती है। उस गलती से भी बड़ी गलती ये करती है वो की गाड़ी रोक टक्कर खाई लड़की को उठाकर अस्पताल नही ले जाती जो कि बदकिस्मत से उसकी ही घर मे काम करने वाली रूकसाना यानी कि शेफाली शाह की बेटी होती है।
और फिर शुरू होता है “मन का अंतर्कलह”। पूरी फ़िल्म इसी अंतर्कलह से उपजे परीस्थितियां और एक माँ का दर्द जो बस आँखों मे कभी गुस्सा कभी लाचारी तो कभी एकदम विचारशून्य नजर आता है के इर्द गिर्द गुजरी है।
कैसी है कलाकारों की कलाकारी?
विद्या बालान ने सशक्त अभिनेत्री है यह उन्होंने इससे पहले भी कई बार सिध्द किया है इसलिए उनका होना इस बात का पहले ही भरोसा दिलाता है कि निर्देशक उन्हें जो भी दिखाने को देगा वो दिखाएंगी। इस बार भी विद्या ने अपने दर्शको के उम्मीद को जिंदा रखा है यानी कि उनकी उपस्तिथि दमदार है।
इस फ़िल्म में जो एक्स-फैक्टर है वो है शेफ़ाली शाह। उनकी अदायगी इतनी प्रभावी है कि उनके बोले हर छोटी छोटी बात दर्शक अपने साथ सिनेमाघरों से लेकर जाएँगे। कहना ज्यादा नही होगा कि उन्होंने कई सीन में विद्या बालान को उन्नीस कर दिया है। उनकी आँखें एक रहस्यमयी किताब की तरह कितना कुछ कहती है और दर्शक बेखबर वो यह बिना जाने पढ़ रहा होता है कि क्या सच है और क्या झूठ।
निर्देशन और फ़िल्म के दूसरे एलिमेंट
जिस फ़िल्म में विद्या बालन हो ,जिस फ़िल्म में शेफ़ाली शाह हो उसमे निर्देशक की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इस बढ़ी जिम्मेदारी को निर्देशक सुरेश त्रिवेणी ने बड़े मन से उठाया है। फ़िल्म में हर जरूरी संवाद को एक शानदार सीन दिया और हर जरूरी सीन को शानदार संवाद। फ़िल्म की रफ्तार न धीरे रखी और न ही तेज। दिल की धड़कनों के साथ खेलने के लिए कई खेल खेले है निर्देशक ने और हर बार निर्देशक दर्शको से जीता है।
फ़िल्म कैसी है?
जिंदगी हर बार आपके पास तश्तरी में सजा कर सही- गलत ही नही लाती की आप अपनी सहूलियत से इसमें से चुन लें।वो कई बार थोड़ा सही-ज्यादा सही और थोड़ा गलत-ज्यादा गलत भी लाती है और हर बार चुनने का सहूलियत नही देती बस थोंप देती है।
यही शुरू होता है मन का अंतर्कलह। तो अगर आप इस लेंस से फ़िल्म को देखे तो आपको मजा आएगा।
रेटिंग
शानदार और अबूझ कहानी के लिए ★
अभिनय में जान फूंकने के लिए विद्या और शेफ़ाली की जोड़ी को ★
शानदार निर्देशन और बिल्कुल जरूरी संवादों के चयन के लिए ★
शानदार शुरुवात और शानदार क्लाइमेक्स के लिए ★